Friday, September 3, 2010

तेरी तपिश में जला हूँ , कहीं पनाह नहीं - मनु गौतम

मैं तुमसे दूर भी जाऊँ तो मुझको राह नहीं
तेरी तपिश में जला हूँ , कहीं पनाह नहीं

कहा बस इतना ही उसने उरुज पे लाकर
यहाँ पे ला के गिराना कोई गुनाह नहीं

धड़क उठेगा अभी देखना ये दिल कमबख्त
हजार टुकड़ों में टूटा है पर तबाह नहीं
 
वो शख्स जिसपे हमने दिल ओ जान वार दिए
वो हमखयाल तो है , पर मेरा हमराह नहीं
 
अब तो बस मैं हूँ , तू है और मांझी के फ़राज़
अब तमन्ना के सराबों की  दिल  को  चाह नहीं !

Wednesday, September 1, 2010

26/11 की कलम से - डॉ. स्वदेश कुमार भटनागर

खौफ के जब से हम हवाले हुए /
जैसे हम खुद पे लटके ताले हुए //

फिर रही है दुआएं भूखी-सी /
देवताओं के तौर काले हुए //

कैसे सच बोले आईना हमसे  ,
आईनों की जुबां पे छाले हुए //

यूँ सियाहपोश कर दिया सूरज ,
धुंध की शक्ल में उजाले हुए //

कुछ तो आँचल की ओट में था ' दिया '
कुछ इवा भी थी लौ संभाले हुए //

खून में भीगती रहेगी सदी 
कह रहे हैं शिगाफ डाले हुए //

आज मजहब से मिलके ये पूछें /
वख्त की कैसे झुक गयी आँखें //

इक मरा लफ्ज़ हाथ में लेकर ,
हम दरिंदो पे कब तलक सोचें //

रौशनी पे अँधेरा भारी है /
हादसों की ज़बान में गर बोले //

ज़ुल्म की उम्र लगती है लम्बी
अमन पर पड़ा इक कफ़न देखें //

दूब की तरह तुम रहो ऐ ' स्वदेश '
लोग जो चाहे तुम्हे वो समझे //

Monday, August 30, 2010

मेरा किरदार जब भी जिंदगी से बात करता है -अशोक अंजुम

बड़ी मासूमियत से सादगी से बात करता है
मेरा किरदार जब भी जिंदगी से बात करता है

बताया है किसी ने जल्द ही ये सूख जाएगी
तभी से मन मेरा घंटों नहीं से बात करता है

कभी जो तीरगी मन को हमारे घेर लेती है
तो उठ के हौसला तब रोशनी से बात करता है

नसीहत देर तक देती है माँ उसको जमाने की
कोई बच्चा कभी जो अजनबी से बात करता है

मैं कोशिश तो बहुत करता हूँ उसको जान लूँ लेकिन
वो मिलने पर बड़ी कारीगरी से बात करता है

शरारत देखती है शक्ल बचपन की उदासी से
ये बचपन जब कभी संजीदगी से बात करता है
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