ऐसे चुप हैं, कि यह मंजिल की कड़ी हो जैसे
तेरा मिलना भी जुदाई की घड़ी हो जैसे
अपने ही साए से हर गाम लरज जाता हूँ
रास्ते में कोई दीवार खड़ी हो जैसे
कितने नादां हैं तेरे भूलने वाले कि तुझे
याद करने के लिए उम्र पड़ी हो जैसे
तेरे माथे की शिकन पहले भी देखी थी मगर
यह गिरह अब के मेरे दिल में पड़ी हो जैसे
मंजिलेँ दूर भी है, मंजिलेँ नजदीक भी है
अपने ही पाँव में जंजीर पड़ी हो जैसे
Friday, May 14, 2010
Sunday, May 9, 2010
हाथ से हर एक मौके को निकल जाने दिया राजेश रेडडी
हाथ से हर एक मौके को निकल जाने दिया
हमने ही खुशियों को रंजो गम में ढल जाने दिया
जीत बस इक वार की दूरी पे थी हमसे मगर
दुश्मनोँ को हमने मैदां में संभल जाने दिया
उम्र भर हम सोचते ही रह गए हर मोड़ पर
फैसलाकुन सारे लम्होँ को फिसल जाने दिया
तुम तो इक बदलाव लाने के लिए निकले थे फिर
खुद को क्योँ हालात के हाथों बदल जाने दिया
हम भी वाकिफ थे ख्यालोँ की हकीकत से मगर
हमने भी दिल को ख्यालोँ से बहल जाने दिया
रफ्ता रफ्ता बिजलियोँ से दोस्ती सी हो गई
रफ्ता रफ्ता आशियाना हमने जल जाने दिया
टालते हैं लोग तो सर से मुसीबत की घड़ी
हमने लेकिन कामयाबी को भी टल जाने दिया
हमने ही खुशियों को रंजो गम में ढल जाने दिया
जीत बस इक वार की दूरी पे थी हमसे मगर
दुश्मनोँ को हमने मैदां में संभल जाने दिया
उम्र भर हम सोचते ही रह गए हर मोड़ पर
फैसलाकुन सारे लम्होँ को फिसल जाने दिया
तुम तो इक बदलाव लाने के लिए निकले थे फिर
खुद को क्योँ हालात के हाथों बदल जाने दिया
हम भी वाकिफ थे ख्यालोँ की हकीकत से मगर
हमने भी दिल को ख्यालोँ से बहल जाने दिया
रफ्ता रफ्ता बिजलियोँ से दोस्ती सी हो गई
रफ्ता रफ्ता आशियाना हमने जल जाने दिया
टालते हैं लोग तो सर से मुसीबत की घड़ी
हमने लेकिन कामयाबी को भी टल जाने दिया
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