Tuesday, November 2, 2010

कुछ पंक्तियाँ - जानकी बल्लभ शास्त्री

कहाँ मिले स्वर्गिये सुमन 
मेरी दुनिया मिटटी की ,
विहस बहन क्यों तुझे सताऊं
कसक बताकर जी की 

बस आखिरी विदा लेता हूँ 
आह यही इतना कह 
मुझसा भाई हो न किसी का 
तुझ सी बहन सभी की !!


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 मैं मगन मझधार में हूँ , तुम कहाँ हो !


दीप की लौ अभी ऊँची , अभी नीची
पवन की घन वेदना , रुक आँख मीची
अन्धकार अवंध , हो हल्का की गहरा
मुक्त कारागार में हूँ , तुम कहाँ हो
मैं मगन मझधार में हूँ , तुम कहाँ हो !

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