मेरी दुनिया मिटटी की ,
विहस बहन क्यों तुझे सताऊं
कसक बताकर जी की
बस आखिरी विदा लेता हूँ
आह यही इतना कह
मुझसा भाई हो न किसी का
तुझ सी बहन सभी की !!
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मैं मगन मझधार में हूँ , तुम कहाँ हो !
दीप की लौ अभी ऊँची , अभी नीची
पवन की घन वेदना , रुक आँख मीची
अन्धकार अवंध , हो हल्का की गहरा
मुक्त कारागार में हूँ , तुम कहाँ हो
मैं मगन मझधार में हूँ , तुम कहाँ हो !
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मैं मगन मझधार में हूँ , तुम कहाँ हो !
दीप की लौ अभी ऊँची , अभी नीची
पवन की घन वेदना , रुक आँख मीची
अन्धकार अवंध , हो हल्का की गहरा
मुक्त कारागार में हूँ , तुम कहाँ हो
मैं मगन मझधार में हूँ , तुम कहाँ हो !
behatreen panktiyan ...
ReplyDeleteपढ़कर अच्छा लगा.
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